भारत शासन अधिनियम, 1919 (मांटेग – चेम्सफोर्ड सुधार)
- मांटेग – भारत के राज्य सचिव
- चेम्सफोर्ड – वायसराय
- इसने पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया और राज्य विधान सभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने का अधिकार दिया
- केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची को पृथक कर केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को अपनी सूचियों पर विधान बनाने का अधिकार प्रदान किया
- इसने प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में विभक्त किया – हस्तांतरित और आरक्षित
- हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था और इस कार्य के लिए वह उन मंत्रियों की सहायता लेता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदाई थें
- आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदाई नहीं थी
- इस अधिनियम ने पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारंभ की
- इस प्रकार भारतीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन किया गया। जिसमें प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से सदस्यों का निर्वाचन होता था
- वायसराय की कार्यकारी परिषद के छह सदस्यों में से तीन सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक हो गया
- इसमें सम्पत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया गया
- इसने साप्रदाईक आधार पर सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल भारतीयों और यूरोपियों के लिए पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया
- लंदन में भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सृजन किया
- लोक सेवा आयोग का गठन किया गया
- इसके अन्तर्गत एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया, जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना
साइमन कमीशन
- नए संविधान में भारत की स्थिति का पता लगाने के लिए जॉन साइमन के नेतृत्व में सात सदस्य की वैधानिक आयोग के गठन की घोषणा की गई
- आयोग के सभी सदस्य ब्रिटिश थें इस वजह से सभी दलों ने इसका बहिष्कार किया
- आयोग ने 1930 में अपनी रिपोर्ट पेश की तथा द्वैद्घ शासन प्रणाली, राज्यों में सरकार का विस्तार, ब्रिटिश भारत के संघ की स्थापना एवं सांप्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था को जारी रखने की सिफारिश की
- आयोग के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए तीन गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया
- इस समिति की सिफारिशों को कुछ संशोधन साथ भारत परिषद अधिनियम, 1935 में शामिल कर दिया गया
भारत शासन अधिनियम, 1935
- अखिल भारतीय संघ की व्यवस्था की गई। इसमें राज्य और रियासतों को एक इकाई की तरह माना गया
- केन्द्र और प्रांत के बीच तीन सूचियों की व्यवस्था की गई – संघीय सूची(59 विषय), राज्य सूची (54 विषय) और समवर्ती सूची(केन्द्र और राज्य दोनों के लिए, 36 विषय)
- अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को से दी गई
- प्रांतों में द्वैद्घ शासन समाप्त कर दिया गया। राज्यों को अपने दायरे में रहकर स्वायत्त तरीके से तीन पृथक क्षेत्रों में शासन का अधिकार दिया गया
- इसके अतिरिक्त अधिनियम ने राज्यों में उत्तरदाई सरकार की स्थापना की
- केन्द्र में द्वैद्ध शासन प्रणाली की शुरुआत की गई। जिसके फलस्वरूप संघीय विषयों को स्थानांतरित और आरक्षित विस्यों में विभक्त करना पड़ा। हालाकि यह प्रावधान कभी लागू नहीं हुआ
- 11 राज्यों में से 6 में द्विसदनीय ( विधानपरिषद तथा विधान सभा) व्यवस्था की गई
- सांप्रदायिक प्रतिनिधत्व व्यवस्था का विस्तार किया गया
- भारत शासन अधिनियम, 1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद को समाप्त कर दिया
- मताधिकार का विस्तार किया गया (लगभग 10% जनसंख्या को मत का अधिकार मिल गया)
- इसके अन्तर्गत भारतीय रिजर्व बैंक को स्थापना की गई
- इसमें प्रांतीय लोक सेवा आयोग और दो या अधिक राज्यों के लिए संयुक्त सेवा आयोग की स्थापना की गई
- इसके तहत 1937 में संघीय न्यायालय को स्थापना हुई
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
- 15 अगस्त 1947 की भारत की स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया
- भारत का विभाजन कर दो स्वतंत्र डोमिनियन – संप्रभु राष्ट्र भारत और पाकिस्तान का सृजन किया
- वायसराय का पद समाप्त कर दिया गया उसके स्थान पर गवर्नर जनरल का पद का सृजन किया गया
- इसने भारतीय रियासतों को स्वतंत्रता दी कि। वे चाहें तो भारत या पाकिस्तान के साथ मिल सकती है
- इसमें ब्रिटिश शासक को विधेयकों पर मताधिकार और स्वीकृत करने के अधिकार से वंचित कर दिया
- इसने शाही उपाधि से भारत का सम्राट शब्द समाप्त कर दिया
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
- भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था
- बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल नाम दिया गया
- उसकी सहायता के लिए 4 सदस्य की एक कार्यकारी परिषद का गठन किया गया
- पहले गवर्नर जनरल – लॉर्ड वारेन हेस्टिंग थें
- मद्रास एवं बंबई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन हो गए
- अधिनियम के तहत 1774 में कलकत्ता में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई
- ब्रिटिश सरकार का कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया
1781 का एक्ट ऑफ सेटलमेंट
- रेगुलेटिंग एक्ट 1773 की कमियों को दूर करने के लिए एक संशोधित अधिनियम
1784 का पिट्स इंडिया एक्ट
- द्वैध शासन की व्यवस्था का आरंभ
- राजनैतिक कार्य के लिए बोर्ड ऑफ कंट्रोल तथा वाणिज्यिक कार्य के लिए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स
- इस अधिनियम के तहत पहली बार भारत को ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र कहा गया
- पहली बार ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्यों और प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया
1833 का चार्टर एक्ट
- बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कहा गया
- लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बनें
- इसने मद्रास और बंबई के गवर्नरों को विधायिका संबंधी शक्ति से वंचित कर दिया
- ईस्ट इंडिया कंपनी की एक व्यापारिक निकाय के रूप में कि जाने वाली गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया
- अब ईस्ट इंडिया कंपनी विशुद्ध रूप से प्रशासनिक निकाय बन गया
1853 का चार्टर एक्ट
- इसने पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी तथा प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया
- परिषद में 6 नए पार्षद जोड़े गए
- परिषद की इस शाखा ने छोटी संसद की तरह कार्य किया (इसमें वहीं प्रक्रिया अपनाई गई जो ब्रिटिश संसद में अपनाई जाती थीं)
- सिविल सेवा में भर्ती हेतु प्रतियोगिता परीक्षा में भारतीय नागरिकों को भी अनुमति दी
- इसमें पहली बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारंभ किया
1858 का भारत शासन अधिनियम
- भारत का शासन ईस्ट इंडिया कम्पनी से निकाल कर सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन चला गया
- गवर्नर जनरल का नाम बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया
- लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय बने
- बोर्ड ऑफ कंट्रोल तथा कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को समाप्त कर भारत में द्वैध प्रणाली समाप्त कर दिया गया
- एक नए पद, भारत के सचिव का सृजन किया गया
- सचिव के पास भारतीय प्रशासन पर पूर्ण शक्ति थी
- सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य था तथा ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदाई था
- सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्य की परिषद का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष भारत का सचिव होगा
भारत परिषद अधिनियम, 1861
- कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय लोगों को शामिल करने की शुरुआत हुई
- वायसराय विधान परिषद में कुछ भारतीयों को नामांकित कर सकता था
- 1862 में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों को विधान परिषद में मनोनीत किया (सर दिनकर राव, बनारस के राजा तथा पटियाला के राजा को)
- इस अधिनियम द्वारा मद्रास और बंबई को विधाई शक्तियां वापस देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की
- इस विधाई नीति के कारण 1937 तक प्रांतों को सम्पूर्ण आंतरिक स्वायतता हासिल हो गई
- वायसराय को परिषद में कार्य संचालन के लिए अधिक नियम बनाने की शक्तियां प्रदान की
- बंगाल, पंजाब तथा उत्तर – पश्चिम सीमा प्रांत में विधान परिषद का गठन किया गया
- इसने वायसराय को आपातकाल में अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया
1909 का अधिनियम ( मार्ले – मिंटो सुधार )
- मार्ले – भारत के राज्य सचिव
- मिंटो – भारत में वायसराय
- केंद्रीय विधान परिषद में सदस्यों की संख्या बढ़कर 16 से 60 हो गई
- विधान परिषद में चर्चा कार्यों का दायरा बढ़ाया गया ( जैसे – अनुपूरक प्रश्न पूछना आदि)
- पहली बार किसी भारतीय को वायसराय की कार्यपालिका परिषद में शामिल किया गया (सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा प्रथम भारतीय सदस्य बने)
- इस अधिनियम ने पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया (मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता है करेंगे)
- मिंटों को सांप्रदायिक निर्वाचन का जनक कहा जाता है