महिला आयोग


राष्ट्रिय महिला आयोग

 महिलाओं को सशक्त बनाने, महिलाओं के हितों की देखभाल व उनका संरक्षण करने,  उनकी गरिमा व सम्मान सुनिशिचत करने, हर क्षेत्र में उन्हें विकास के समान अवसर दिलाने, महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों एवं अपराधों पर त्वरित कार्यवाही करने के लिए देश में राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया है । 

– स्थापना : 31 जनवरी 1992 (केन्द्र सरकार द्वारा)
– सांविधिक निकाय (ना कि संवैधानिक) – क्योंकि इसका गठन संसद में पारित अधिनियम (राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990) के अन्तर्गत हुआ था
– गठन से संबंधित धारा : 3
– मुख्यालय : नई दिल्ली
– संबंधित मंत्रालय : महिला एवं बाल विकास मंत्रालय

– प्रथम अध्यक्ष : जयंती पटनायक
– प्रथम सचिव : उमा पिल्लै 
– वर्तमान अध्यक्ष : रेखा शर्मा (9 वीं)

संरचना : 1 अध्यक्ष + 5 सदस्य + 1 सचिव

-अध्यक्ष तथा सदस्य की नियुक्ति केन्द्र सरकार द्वारा होती है

– 5 सदस्यों में कम से कम 1सदस्य अनुसूचित जाती तथा 1 सदस्य अनुसूचित जनजाति का होना चाहिए

अर्हता : 

  • अध्यक्ष :केन्‍द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्‍ट, जो महिलाओं के हित के लिए समर्पित हो।
  • सदस्य :  केन्‍द्रीय सरकार द्वारा ऐसे योग्य, सत्यनिष्ठ और प्रतिनिष्ठित व्‍यक्तियों में  से नामनिर्दिष्ट पांच सदस्य जिन्हें विधि या विधान, व्‍यवसाय संघ आंदोलन, महिलाओं की नियोजन संभाव्‍यताओं की वृद्धि  के लिए समर्पित उद्योग या संगठन के प्रबंध, स्वैच्छिक महिला संगठन (जिनके अंतर्गत महिला कार्यकर्ता भी हैं), प्रशासन, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा या सामाजिक कल्याण का अनुभव है;  

 (परन्तु उनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्‍यक्तियों में से प्रत्‍येक का कम से कम एक सदस्य होगा)

  • केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट एक सदस्य-सचिव जो :-
  1. प्रबंध, संगठनात्मक संरचना या सामाजिक आंदोलन के क्षेत्र में विशेषज्ञ है, या
  2. ऐसा अधिकारी है जो संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है और जिसके पास समुचित अनुभव है।
  • अध्यक्ष तथा सदस्य का कार्यकाल : 3 वर्ष
  • अध्यक्ष तथा सदस्य द्वारा त्यागपत्र : केन्द्र सरकार को

वेतन : केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित

अध्यक्ष और सदस्य को पद से हटाना :
– केन्द्र सरकार द्वारा दिवालिया, मानसिक या शारीरिक रूप से अस्वस्थ, कार्य करने असक्षम या पद का दुरुपयोग करता हो
– लगातार तीन बैठकों में बिना बताए अनुपस्थित रहने पर भी उसे हटाया जा सकता है
– आयोग अपना वार्षिक रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंपता है

आयोग के कार्य :

  • संविधान और कानूनों के अधीन महिलाओं को उपलब्ध कराए गए सुरक्षा उपायों से जुड़े सभी मामलों जांच एवं परीक्षण करना 
  • महिलाओं के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए योजना बनाने की प्रक्रिया में भागीदारी
  • महिलाओं से संबंधित वर्तमान कानूनों की समीक्षा करना तथा संशोधनों का सुझाव देना 
  • महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव और उत्पीड़न, कार्यस्थल पर यौन शोषण जैसी समस्याओं की जांच करना और इस मामले में सक्षम अधिकारी को सुझाव देना 
  • साथ ही कारागार, रिमांड गृहों जहां महिलाओं को अभिरक्षा में रखा जाता है, आदि का निरीक्षण करना और जहां कहीं आवश्‍यक हो उपचारात्‍मक कार्रवाई किए जाने की मांग करना

संबंधित धारा :

धारा 3 : आयोग का गठन तथा संरचना 
धारा 4 : त्यागपत्र, हटाना, वेतन, सेवा शर्तें
धारा 5 : आयोग के अधिकारी तथा कर्मचारी
धारा 10 : कार्य
धारा 11 : केन्द्र सरकार द्वारा अनुदान
धारा 13 : आयोग अपना रिपोर्ट केन्द्र सरकार को देगा
धारा 14 : केन्द्र सरकार रिपोर्ट संसद के समझ रखेगा
धारा 17 : केन्द्र सरकार आयोग के संचालन के लिए नियम बनाएगा

मध्यप्रदेश महिला आयोग 

गठन : 23 मार्च 1998 (राज्य सरकार द्वारा)

सांविधिक निकाय – क्योंकि इसका गठन मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग अधिनियम 1995 की धारा 3 के अन्तर्गत हुआ था

संरचना : 1 अध्यक्ष + 5 सदस्य + 1 सचिव

आयोग की अध्यक्षा एवं सभी अशासकीय सदस्य विशिष्ट क्षेत्रों (जैसे सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षा, चिकित्सा, विधि) से मनोनीत किये जाते हैं । 

आयोग के शासकीय सदस्य सचिव शासकीय विभाग के होते है । 

अध्यक्ष को मंत्री तथा सदस्यों को राज्यमंत्री के बराबर का दर्जा मिलता है

कार्यकाल : 3 वर्ष

त्यागपत्र : राज्य सरकार

पद से हटाना : राज्य सरकार द्वारा ( जैसा कि राष्ट्रीय महिला आयोग में हटाया जाता है)

वर्तमान अध्यक्ष : अभी रिक्त है ( पूर्व: शोभा ओझा)
वर्तमान सचिव : उषा सिंह सोलंकी
आयोग अपना रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपता है।

राज्य महिला आयोग की शक्तियां :

  • आयोग को सिविल अदालत के अधिकार प्राप्त हैं ।
  •  इस आयोग को सतर्क जांचकर्ता, परीक्षणकर्ता और प्रेक्षक की हैसियत प्राप्त है 
  • आयोग ऐसा अधिकार पूर्ण निकाय है जिसकी सिफारिशों को सरकार अनदेखा नहीं कर सकती है 
  • किसी भी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अध्यापेक्षा करना
  • साक्षियों व दस्तावेजों के परीक्षण के लिए कमीशन जारी करना

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