स्वतंत्रता आन्दोलन में मध्यप्रदेश का योगदान


स्वतंत्रता आन्दोलन में मध्यप्रदेश का योगदान से सम्बंधित कुछ बातें :

  • सन् 1857 की क्रांति में मध्यप्रदेश का बहुत असर रहा। बुदेला शासक अंग्रेजों से पहले से ही नाराज़ थे। इसके फलस्वरूप 1824 में चंद्रपुर (सागर) के जवाहर सिंह बुंदेला,नरहुत के मधुकर शाह, मदनपुर के गोंड मुखिया दिल्ली शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी।
  • इस प्रकार सागर, दमोह, नरसिंहपुर से लेकर जबलपुर, मंडला और होशंगाबाद के सारे क्षेत्र में विद्रोह की आग भड़की, लेकिन आपसी सामंजस्य और तालमेल के अभाव मेंअंग्रेज इन्हें दबाने में सफल हो गए।
  • प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन् 1857 में मेरठ, कानपुर, लखनऊ, दिल्ली, बैरक्पुर आदि के विद्रोह की लपटें यहाँ भी पहुंची। तात्या टोपे और नाना साहेब पेशवा के संदेश वाहक ग्वालियर, इंदौर, मह, नीमच, मंदसौर, जबलपुर, सागर, दमोह, भोपाल, सीहोर और विथ्य के क्षेत्रों में घूम-घूम कर विद्रोह का अलख जगाने में लग गए। उन्होंने स्थानीय राजाओं और नवाबों के साथ-साथ अंग्रेजी छावनियों के हिंदुस्तानी सिपाहियों से संपर्क बनाए। इस कार्य के लिए “रोटी और कमल का फूल” गांव-गांव में घुमाया  गया 
  •  मुगल शहज़ादे हुमायूँ इन दिनों रतलाम, जावरा, मंदसौर, नीमच क्षेत्रो का दौरा कर रहे थे। इन दौरों के परिणामस्वरूप 3 जून 1857 को नीमच छावनी में विद्रोह भड़क गया और सिपाहियों ने अधिकारियों को मार भगाया। मंदसौर में भी ऐसा ही हुआ। 14 जून को ग्वालियर छावनी के सैनिकों ने भी हथियार उठा लिए। इस तरह शिवपुरी, गुना, और मुरार में भी विद्रोह भड़का।उधर तात्या टोपे और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर जीता महाराजा सिंधिया ने भागकर आगरा में अंग्रेजों के यहाँ शरण ली। 
  • 1 जुलाई 1857 को शादत खाँ के नेतृत्व में होल्कर नरेश की सेना ने छावनी रेसीडेंसी पर हमला कर दिया। कर्नल ड्यूरेंड, स्टूअर्ट आदि सीहोर की ओर भागे, पर वहाँ भी विद्रोह की आग सुलग चुकी थी
  • भोपाल की बेगम ने अंग्रेज अधिकारियों को संरक्षण दिया। अजमेरा के राव बख्तावरसिंह ने भी विद्रोह किया और धार  आदि क्षेत्र विद्रोहियों के कब्ज़े में आ गए। महू की सेना ने भी अंग्रेज अधिकारियों को मार भगाया।
  • मंडलेश्वर, सेंधवा, एडवानी आदि क्षेत्रों में इस क्रांति का नेतृत्व भीमा नायक  ने  किया । शादत खाँ, महू इंदौर के सैनिकों के साथ दिल्ली गया। वहां बादशाह जफर के प्रति मालवा के क्रांतिकारियों ने अपनी वफ़ादारी प्रकट किया 
  •  सागर, जबलपुर और शाह गढ़ भी क्रांतिकारियों के केंद्र थे। विजय राधोगढ़ के राजा ठाकुर सरजू प्रसाद इन क्रांतिकारियों के अगुआ थे। जबलपुर की 52वीं रेजीमेंट उनका साथ दे रही थी। नरसिंहपुर में मेहरबान सिंह ने अंग्रेजों को खदेड़ा। मंडला में रामगढ़ की रानी  ने विद्रोह की अगुआई की  थी। इस विद्रोह की चपेट में नेमावर, सतवास और होशंगाबाद भी आ गए। रायपुर, सोहागपुर और संबलपुर ने भी क्रांतिकारियों का साथ दिया।
  •  मध्यप्रदेश में क्रांतिकारियों में आपसी सहयोग और तालमेल का अभाव था इसलिए अंग्रेज इन्हें एक-एक कर कुचलने  में कामयाब हुए। 
  • सर ह्यूरोज  ने ग्वालियर  फिर  से जीत लिया। 
  • महू, इंदौर, मंदसौर, नीमच के विद्रोह को कर्नल ड्यूरेण्ड, स्टुअर्ट और हेमिल्टन ने दबा दिया।
  •  लेफ्टिनेंट रॉबर्ट, कैप्टन टर्नर, स्लीमन आदि महाकोशल क्षेत्र में विद्रोह को दबाने में सफल हुए।
  • 1899 के लाहौर अधिवेशन में इस राज्य के डॉ. हरि सिंह गौर ने न्याय विभाग तथा प्रशासन को पृथक-पृथक रखने की मांग उठायी । उन्होने ही 1904 ई. में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का कडे शब्दों में विरोध किया
  • • मध्यप्रदेश में राजनीतिक गतिविधियों की शुरूआत 1906 में जबलपुर अधिवेशन के साथ हुई। इसमें पं.रविशंकर शुक्ल, डॉ. राघवेंद्र तथा हरि सिंह गौर आदि सक्रिय काँग्रेसी सम्मिलित थे।
  • -इसके पूर्व कांग्रेस के अधिवेशनों में मध्य प्रांत से बाबू राव, किनखेड़े, चिटणीस, अब्दुल अजीज आदि भाग लेते रहें।
  •  खण्डवा से सुबोधसिन्धु व जबलपुर से जबलपुर टाइम्स का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया।
  • 1907 में जबलपुर में एक क्रांतिकारी दल का गठन किया गया।  पंडित माखनलाल चतुर्वेदी अपने समाचार-पत्र कर्मवीर के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  •  महात्मा गांधी ने असहयोग और खिलाफत आंदोलन की घोषणा की (1920) तो राज्य में प्रभाकर डूण्डीराज जाटव तथा अब्दुल जफ्फार खान ने खिलाफत आंदोलन संगठित किया।
  •  1946 में सिवनी सत्याग्रह से म.प्र. में वास्तविक स्वतंत्रता संघर्ष शुरू हुआ।
  •  जबलपुर में होमरूल लीग की इकाई का गठन हुआ।
  •  20 मार्च, 1949 को खण्डवा में मध्य प्रांतीय राजनैतिक परिषद की बैठक हुई थी जिसकी अध्यक्षता दादा साहेब खापर्ड ने की थी। इसमें रोलेट एक्ट विरोधी प्रस्ताव पारित हुआ था.

जबलपुर झण्डा सत्याग्रह (1923)

  • जबलपुर में ही झंडा सत्याग्रह की नीव पड़ी थी । असहयोग आंदोलन की तैयारी के सिलसिले में पहुचे अजमल खां और कांग्रेसियों के सम्मान के साथ जबलपुर नगरपालिका भवन पर तिरंगा फहराने की रणनीति कांग्रेस ने बनायी। पुलिस कमिश्नर ने गुस्साकर उस तिरंगे को उतरवाया और पैरो तलें कुचला।
  • इस अपमान के विरोध में तपस्वी पं. सुंदर लाल, नाथुराम मोदी, सुभद्राकुमारी चौहान, लक्ष्मण सिंह चौहान, नर हरि अग्रवाल आदि ने जुलुस निकाला, जिन्हें पुलिस ने रोक दिया, लेकिन दूसरे जत्थे ने विक्टोरिया टाउन हाल पर झण्डा फहराया  यह कार्य दमोह निवासी श्री प्रेमचंद जैन उस्ताद ने किया था। इसी  से प्रेरित हो  के  कांग्रेस  ने  नागपुर  को अधिवेशन  के लिए चुना 

नागपुर झण्डा सत्याग्रह

  •  13 अप्रैल 1923 को नागपुर में शुरू इस सत्याग्रह के साथ जबलपुर में पुनः झण्डा सत्याग्रह का आयोजन हुआ। सत्याग्रह का नेतृत्व देवदास गाँधी, रामगोपालाचार्य तथा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने किया। राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर सुन्दर लाल को 6 माह की सजा दी गई। सरोजनी नायडू, मौलाना आजाद की जबलपुर में उपस्थिति के मध्य कन्छोड़ीलाल, बंशीलाल और काशीप्रसाद ने टाउन हाल पर फिर तिरंगा लहरा दिया।
  •  अगस्त, 1923 को ब्रिटिश अधिकारियों ने राष्ट्रीय ध्वज के साथ स्वयंसेवकों को जुलूस निकालने की अनुमति दी। इस जुलूस का नेतृत्व माखनलाल चतुर्वेदी, बल्लभ भाई पटेल तथा  राजेन्द्र प्रसाद ने किया।

नमक सत्याग्रह

  •  जबलपुर में 6 अप्रैल 1930 को सेठ गोविन्ददास और  द्वारिका प्रसाद मिश्र ने नमक सत्याग्रह किया।
  •  नमक सत्याग्रह में सिवनी जिले के दुर्गा शंकर मेहता ने गाँधी चौक पर नमक बनाकर सत्याग्रह की शुरूआत की।
  •  नमक सत्याग्रह में सिवनी जिले के दुर्गा शंकर मेहता ने गाँधी चौक पर नमक. बनाकर सत्याग्रह की शुरूआत की
  • यहाँ जेल में सुभाष चंद्र बोस, आचार्य विनोबा भावे, पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र, शरद चंद्र बोस व एच.वी.कामथ बंद थे

मध्य प्रदेश जंगल सत्याग्रह

  • 1930 अपनी जमीन और जंगल को बचाने के लिये आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसक जंगल सत्याग्रह किये। ये सत्याग्रह संपूर्ण भारत के विभिन्न हिस्सों में हुए. किंतु इनका प्रभाव छोटा नागपुर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान में ज्यादा था।
  •  जबलपुर में सर्वप्रथम जंगल ‘ सत्याग्रह की रणनीति बनी सिवनी, टुरिया (सिवनी जिला ) तथा घोड़ा-डॉगरी (बेतूल) के आदिवासियों ने नमक सत्याग्रह के दौरान जंगल सत्याग्रह किये । 
  • घोड़ा – डॉगरी में गजनसिंह कोरकू एवं बंजारी सिंह कोरकू के नेतृत्व में जंगल सत्याग्रह  किया  गया 

मध्य प्रदेश जंगल सत्याग्रह 1942

1942 में बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी शाहपुर क्षेत्र के आदिवासियों के एक समूह ने 19 अगस्त 1942 को वीरसा वीरसा गोंड एवं जिर्रा गोंड के नेतृत्व में घोड़ाडोंगरी रेलवे स्टेशन के पास रेल की पटरियां उखाड़ दिया । वीरसा गोंड की कारावास में मौत हुई।

चरण पादुका नरसंहार 

4 जनवरी 1931 को  छतरपुर क्षेत्र में चरणपादुका ग्राम (उर्मिल नदी तट) में स्वतंत्रता सेनानियों की शांतिपूर्ण बैठक पर अंधा-धुंध गोलियां पुलिस ने चलायी. जिसमें  21  सेनानी शहीद हो गये यह मध्यप्रदेश का जलियांवाला बाग काण्ड कहलाता है। यहां गोली चालने का आदेश कर्नल फिशर ने दिया था।

पंजाब मेल हत्याकांड

  •  23-24 जुलाई 1931 को वीर यशवंत सिंह (दमोह), देव नारायण तिवारी और दलपत राव ने खण्डवा रेलवे स्टेशन पर हमला कर अंग्रेज हैक्सल की हत्या की।
  •  खण्डवा अदालत ने 11 दिसम्बर, 1931 को यशवंत सिंह एवं देव नारायण तिवारी को फाँसी की सजा तथा दलपत राव को काला पानी की सजा सुनाई।
  • 1922 ई. में राज्य के भोपाल रियासत   की सीहोर कोतवाली के सामने विदेशी कपड़ों की   होली जलायी गयी थी 
  • भोपाल में 1938 ई. में भोपाल राज्य प्रजामण्डल की स्थापना की गई। 

 रतलाम के प्रमुख घटनाएं

  • रतलाम में राष्ट्रीय आंदोलन का सूत्र पात स्वामी ज्ञानानंद की प्रेरणा से हुआ।
  •  यहाँ पर 1931 ई. में स्त्री सेवादल 
  • 1935 ई. में प्रज्ञा परिषद की स्थापना की गई 
  • राज्य के झाबुआ जिले मे 1934 ई. में प्रज्ञामंडल की सहायता से ब्रिदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, शराब बंदी व हरिजन उद्धार संबंधी आंदोलन प्रारम्भ किये गये 
  • 1934 में ही भोपाल रियासत में मौलाना तर्जी मशरिकी खान व शाकिर अली खान के नेतृत्व में अन्जुमन खुद्दामे वतन तथा मास्टर लाल सिंह, लक्ष्मीनारायण सिंघल डॉ जमुना प्रसाद मुखरैया पं.उद्धव दास मेहता. पं चतुर नारायण मालवीय के नेतृत्व में भोपाल राज्य हिन्दु सभा की नींव डाली गयी

सोहावल का नर संहार या माजन गोलीकांड

• 19 जुलाई, 1938 हिनौता गाँव (सतना जिले में बिरसिंहपुर के समीप) में सोहावल रियासत में ब्रिटिश हस्तक्षेप के विरोध में पगार खुर्द के लालबुद्ध प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक आम सभा का आयोजन था।

• इस सभा में सम्मिलित होने जा रहे लालबुद्ध प्रताप सिंह, रामाश्रय गौतम और मंधीर पांडे की माजन गाँव के समीप ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई।

त्रिपुरी अधिवेशन (1939) 52 वां  अधिवेशन 

  • जबलपुर (त्रिपुरी) में कांग्रेस का नियमित वार्षिक अधिवेशन हुआ यह अध्यक्ष पद के लिये चुनाव के लिए प्रसिद्ध है, जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पट्टाभि सीतारमैया को 203 मतों से हरा दिया चूंकि पट्टाभि सीतारमैया गाँधीजी के उम्मीदवार थे, अतः कांग्रेस में संकट गहरा गया इसलिए  इसे त्रिपुरी संकट कहा जाता है।

व्यक्तिगत सत्याग्रह (1940)

गाँधीजी ने राजनीतिक चेतना के केन्द्र बन चुके जबलपुर से व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया। विनोबा भावे पहले सत्याग्राही बने।

ध्य प्रदेश में भारत छोड़ो आदोलन (1942)

  • सर्वप्रथम विदिशा से इस आंदोलन का प्रारंभ हुआ, जब मराठी नव युवकों ने अंग्रेजों के विरूद्ध सक्रिय प्रतिरोध की नीति अपनाई।
  • गाँधीजी के “करो या मरो’ से प्रेरणा लेकर 2 अक्टूबर 1942 को मन्डलेश्वर में क्रांतिकारी बंदियों ने जेल तोड़कर अंग्रेजों के विरूद्ध सभा की।
  • भोपाल के नवाब के विरूद्ध भारत छोड़ों के बाद एक तीव्र आंदोलन हुआ; जिससे घबराकर नवाब ने अपना विलय भारत मे स्वीकार किया।

रीवा का चावल आन्दोलन (28 फरवरी, 1947)

जबरिया लेवी के विरूद्ध चावल आन्दोलन रीवा में चला।

• रीवा रियासत में जबरिया लेव्ही वसूली के विरोध में त्रिभुवन तिवारी (भदवारग्राम) तथा भैरव प्रसाद उरमालिया (शिवराजपुर) की रीवा रियासत के सैनिकों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई।

MPPSC Prelims 2022 60 Days Program
Books & Refrences For MPPSC 2022
MPPSC 2022 New Syllabus

One thought on “स्वतंत्रता आन्दोलन में मध्यप्रदेश का योगदान”

  1. Mandvi vyas says:

    Nice 🙂 website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *